चना की खेती की पूरी जानकारी
लागत में अधिक उत्पादन देने वाली फसल का चयन करना किसानों के लिए सबसे बड़ी चुनौती रही है क्योंकि सभी फसलें अलग-अलग उत्पादन देती हैं। लेकिन जब चने की बात आती है तो खेती के लिए उपयुक्त बेहतर और स्मार्ट तरीके अपनाकर इस कठिनाई को दूर किया जा सकता है। चना पूरे भारत में उगाया जाता है क्योंकि यह उच्च तापमान का सामना कर सकता है और चावल या गेहूं जैसी अन्य फसलों की तुलना में प्रति एकड़ अच्छी उपज भी प्रदान करता है।
चना की खेती के लिए बुआई का समय
किसान भाइयों अक्टूबर के दूसरे सप्ताह तक असिंचित दशा में चना बो देना चाहिए। तथा चने की खेती धान की फसल कटने के बाद भी की जाती है, ऐसी स्थिति में बुआई दिसंबर के मध्य तक कर लेनी चाहिए। लेकिन बुवाई में जितनी देरी होगी, उपज उतनी ही कम होगी। इससे फसल में चना फली भेदक का प्रकोप अधिक होने की संभावना रहती है। इसलिए अक्टूबर का पहला सप्ताह चने की बुवाई के लिए सबसे अच्छा है।ओर आप को अगेती बुवाई के लिए अगेती पकने वाली किस्मों और देर से बुआई के लिए देर से पकने वाली किस्मों का चयन करना चाहिए। तो आइए अब जानते है चने की बेहतरीन किस्मों के बारे में।
ये रही चने एक की सबसे उन्नत किस्में
जी.एन.जी.1958
किसान भाइयों Gng 1958 एक अच्छी उपज वाली किस्म है इसके पत्ते लम्बे होते हैं। चने की इस किस्म के लिए केवल एक सिंचाई की आवश्यकता होती है जिससे पानी की बचत होती है। रेतीली मिट्टी में यह किस्म दो सिंचाइयों में पककर तैयार हो जाती है।और Gng 1958 चने के 100 दानों का वजन 26 ग्राम होता है। इस किस्म में कीटों का प्रकोप कम होता है जिससे लागत कम हो जाती है। जो 120 से 125 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। यह प्रति हेक्टेयर 18 से 24 क्विंटल तक उपज देती है।
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जे.जी.14
किसान भाइयों ये चने की तेजी से बढ़ने वाली किस्म है और 100 दिनों में उत्कृष्ट उत्पादन देती है, ओर यह क़िस्म प्रति हेक्टेयर 20से 25क्विंटल तक उपज देती है।जिसमें फफूंदी नहीं लगती है। फसल को कम पानी की आवश्यकता होती है, 6 फीट से कम ऊंचाई में बढ़ती है और एक पंक्ति में अधिक पंक्तियों को लगाकर उत्पादन क्षेत्र को बढ़ाया जा सकता है। यह छोटे क्षेत्रों में खेती के लिए भी उपयुक्त है।
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चना की खेती के लिए बुआई की विधि
किसान भाईयो बुआई के समय उचित नमी में सीडड्रिल से बुआई करें। और यदि आप के खेत में नमी कम हो तो बीज को नमी के सम्पर्क में लाने के लिए बुआई गहराई में करें।पौध की संख्या 25 से 30 प्रति वर्ग मीटर के रखे।पंक्तियों के बीच की दूरी 30 से.मी. और पौधे से पौधे की दूरी 10 से.मी.रखे।पछेती बोनी की अवस्था में कम वृद्धि के कारण उपज में होने वाली क्षति की पूर्ति के लिए सामान्य बीज़ दर से 20-25 किलोग्राम बढ़ाकर बोनी करें। देरी से बोनी की अवस्था में पंक्ति से पंक्ति की दूरी 25 से.मी. रखें।
ओर इस बात का विशेष ध्यान रखे कि बीजों को बहुत अधिक गहराई में नहीं बोना है।इससे कटाई के समय उन्हें निकालना मुश्किल हो सकता है और पौधे की फलियों की संख्या कम हो सकती है। अच्छी पेंदावार ओर परिणामों के लिए बुवाई करते समय गहराई 2 सेमी से अधिक ना रखे।
चना की खेती के लिए खाद एवं उर्वरक
उर्वरकों और कीटनाश का उपयोग मिट्टी आधार पर किया जाना चाहिए। अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए 20-25 किलोग्राम नाइट्रोजन 50-60 किलोग्राम फास्फोरस 20 किलोग्राम पोटाष व 20 किलोग्राम गंधक प्रति हेक्टेयर की दर से उपयोग करे ।असिंचित अवस्था में 2 प्रतिषत यूरिया या डी.ए.पी. का फसल पर स्प्रे करने से उपज में वृद्धि होती है।
चना की खेती के लिए सिंचाई
किसान भाईयों जैसा की आप जानते है चने की फसल के लिए कम पानी की आवश्यकता होती है। सिचिंत क्षेत्रों में चने की खेती के लिए 3 से 4 सिंचाई ही करनी चाहिये। इसके पश्चात् फसल की गुड़ाई करने के बाद बुवाई के 35-40 दिन बाद प्रथम सिंचाई, 70-80 दिन बाद दूसरी सिंचाई एवं अन्तिम सिंचाई 105-110 दिनों बाद करनी चाहिये। ओर किसान भाईयों इस बात का ज़रूर ध्यान रखें कि फसल को अधिक पानी नही दे इस से जड़ सड़न और पोषक तत्वों की कमी हो सकती है, ओर कम पानी देने से वृद्धि रुक सकती है और पैदावार असमान हो सकती है। इस लिए फसल को पर्याप्त पानी ही दे
चना की खेती की लिए मौसम जलवायु कैसी होनी चाहिए
किसान भाईयों चना एक नमी वाले वातावरण की फसल है जिसे रबी मौसम में बोया जाता हे। चने की खेती के लिए मध्यम वर्षा और नमी वाले क्षेत्र सर्वाधिक उपयुक्त है। फसल में फूल आने के बाद वर्षा होना से उत्पादन में कमी होती है, क्योंकि वर्षा के कारण फूल परागकण परागकोश से निकल कर एक दूसरे से चिपक जाते जिससे बीज नही बन पाते है फसल के दाना के बनते समय 30 सेल्सियस से कम और 300 सेल्सियस से उच्च तापक्रम नुकसानदायक रहता है।
चना की खेती में खरपतवार नुकसान
किसान भाइयों तो जैसा की आप जानते है कि चने की खेती में विभिन्न खरापतवारो जैसे हिरनखुरी, गाजरी, प्याजी,हिरनखुरी,गाजरी, प्याजी, मोथा, बथुआ,से उपज में 40 से 50 प्रतिशत कमी होती है ओर पौधो को आवश्यक पोषक तत्व नहीं मिलपाते और पौधे छोटे रह जाते है जिस से की पैदावार में कमी के साथ फसल की गुणवाता पर भी इस का प्रभाव देख ने को मिलता है।
चने की खेती में खरपतवार नियंत्रण के उपाय
किसान भाइयों खेत में विभिन्न प्रकार की घासो को पैदा होने से रोक ने के लिए बुआई के 2 से 3 दिन बाद प्रति एकड़ में 200लीटर पानी के अंदर 700मिलीलीटर पेंडीमेथिलीन और 38.8 CS मिलाकर छिड़काव करे जिस की खेत में खेत में विभिन्न प्रकार की घासो को पैदा होने से रोका जा सके। और साथ ही प्रति एकड़ में 200 ग्राम एट्राजिन के प्रयोग से खरपतवार से छुटकारा पाया जा सकता है।
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